लॉकडाउन के बीच बीएचयू से सामने आए यौन शोषण के हैरतअंगेज आरोप

कोराना वायरस (Coronavirus) के कहर के बीच जहां एक ओर लॉकडाउन (Corona Lockdown) लगा हुआ है, वहीं वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (kashi hindu vishwavidyalaya) की जॉइंट ऐक्शन कमिटी की पूर्व सदस्य ने अपने साथियों पर यौन शोषण के सनसनीखेज आरोप लगाए हैं।


वाराणसी
कोरोना संकट के कारण किए गए लॉकडाउन के बीच काशी हिंदू विश्वविद्यालय से यौन शोषण की एक बड़ी खबर सामने आई है। इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर खासा हंगामा मचा हुआ है। बीएचयू परिसर में काम करने वाले कांग्रेस और वाम समर्थित छात्र समूह, जॉइंट ऐक्शन कमिटी की एक पूर्व सदस्य ने समूह के तीन सदस्यों पर यौन अत्याचार एवं लैंगिक भेदभाव का आरोप फेसबुक पर पोस्ट डालकर लगाया है। यही नहीं, आरोप लगाने वाली सदस्य ने इस संगठन पर दोषियों को बचाने का भी आरोप मढ़ा है। इसके साथ ही पीड़िता ने विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रों से इस समूह के बहिष्कार के साथ समूह में शामिल 'यौन भेड़ियों' को बेनकाब करने का भी आह्वान किया है।


क्या है घटना क्रम
जॉइंट ऐक्शन कमिटी की एक पूर्व सदस्य अंजली (बदला हुआ नाम) ने 27 अप्रैल को अपने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा। जिसमें उक्त सदस्या ने 2017 और 2018 की सर्दियों में अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की घटनाओं का जिक्र किया। उसी पोस्ट में अंजली ने लिखा कि जब देश में 'मी टू' कैम्पेन का दौर चल रहा था तो मैं लगभग दस महीने बाद अपने ऊपर हुए अत्याचार को कहने का साहस जुटा पाई।

28 अप्रैल को अंजली ने फिर एक लम्बा पोस्ट लिखा और विस्तार से बताया कि दिसंबर 2017 में कमिटी के सदस्य राज अभिषेक सिंह द्वारा दो बार और सितम्बर 2018 में शांतनु सिंह द्वारा एक बार मेरा प्रत्यक्ष यौन शोषण किया गया। जबकि दीपक राजगुरु ने मेरे चरित्र पर हमला करते हुए सार्वजनिक रूप में कहा कि मैं कितनी आसानी उपलब्ध हूं। अंजली यहीं नहीं रुकती हैं। वो अपने पोस्ट में लिखती हैं कि मैं कोई अकेली लड़की नहीं हूं, जो इस समूह के पुरुषों का शिकार हुई हूं। अंजली के मुताबिक, उनकी जानकारी में ऐसी 7 महिलाएं हैं जो यौन हिंसा का शिकार हुई हैं। कुछ इसी राजनैतिक समूह की सदस्य हैं और कुछ बाहर की। जिन पुरुषों ने शोषण किया वे हैं राज अभिषेक, शांतनु सिंह, दीपक राजगुरु व अनंत शुक्ला।

अंजली का आरोप है कि उनके द्वारा शिकायत के बाद कमिटी की केवल एक मीटिंग बुलाई गई जिसमें राज अभिषेक ने मेरे साथ किए गए किसी भी यौन अत्याचार से इनकार कर दिया गया। अलबत्ता मेरे ऊपर ही कीचड़ उछाला गया कि मैंने जब घटना हुई तब क्यों नहीं शिकायत की, यह वाकया मेरे लिए दुःखद था। मैं इस समूह से पिछले दो वर्षों से जुड़ी थी। मुझे लगता था कि जैसा यहां कहा जाता है कि कमिटी महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करती है, लैंगिक न्याय की बात होती है तो मुझे भी न्याय मिलेगा। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैं ही दोषी ठहराई गई और मेरे साथ यौन हिंसा करने वाले पाक-साफ बने रहे और समूह में सक्रिय रहे जबकि मुझे समूह छोड़ना पड़ा। ये वो लोग हैं जो गांधी का नाम लेते हैं, सत्य-अहिंसा की बात करते हैं।

जॉइंट ऐक्शन कमिटी की सफाई
28 अप्रैल के अंजली की पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर कमिटी की जमकर आलोचना हुई। उसे यौन अपराधियों का गिरोह तक कहा गया। सोशल मीडिया पर चल रही आलोचनाओं से घबराई जॉइंट ऐक्शन कमिटी ने 29 अप्रैल की शाम अपने फेसबुक पेज पर एक लम्बा पोस्ट लिखा जिसमें यह बताने की कोशिश की गयी कि
1- कमिटी महिलाओं के साथ हिंसा के मामलों में संवेदनशील है, लैंगिक न्याय कमिटी के प्रमुख अजेंडों में एक है।
2- अंजली प्रकरण में मामला संज्ञान में आने के बाद एक मीटिंग बुलाकर विस्तृत चर्चा की गयी जिसमें अंजली ने खुद ही मामले में किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से इनकार कर दिया और राज अभिषेक को पूरे मामले से बरी करते हुए खुद को जॉइंट ऐक्शन कमिटी से अलग कर लिया।
3- इस प्रकरण के बाद यह आवश्यकता महसूस की गयी कि संगठन से जुड़ी या किसी भी महिला के साथ लैंगिक न्याय के लिए एक आतंरिक अनुशासन एवं शिकायत कमिटी का गठन किया गया। जिसकी सदस्य हैं-विजन संस्था की जागृति राही, क्लाइमेट अजेंडा की एकता शेखर और रिदम संस्था के अनूप श्रमिक।
4- जॉइंट ऐक्शन कमिटी ने समूह में कार्य करने वाली महिला सदस्यों से किसी प्रकार की शिकायत के लिए 30 दिन का समय दिया और तब तक के लिए राज अभिषेक, शांतनु सिंह, अनंत शुक्ला को समूह से निष्कासित कर दिया गया।

अंजली का पलटवार
जॉइंट ऐक्शन कमिटी के सफाइनामे और उसके महिला सदस्यों की पोस्ट के बाद अंजली ने पुनः उसी रात एक बेहद कठोर पोस्ट लिखा। अंजली ने लिखा, 'जॉइंट ऐक्शन कमिटी ने आज झूठा स्टेटमेंट जारी कर के ये साबित कर दिया कि उस ग्रुप के कुछ लोग ही अब्यूजर्स नहीं है बल्कि उसका एक-एक सदस्य सेक्सुअल अब्यूजर्स के साथ खड़ा है। उन्होंने किसी भी अब्यूजर्स से बिना सवाल किए अपने स्टेटमेंट में हम पर निजी वार किया और लगभग हर बात झूठ ही लिखी। बाज़ारीकरण ये लोग बहुत अच्छी तरह से कर लेते हैं।

जॉइंट ऐक्शन कमिटी को संदिग्ध बनाते हैं यह सवाल
1- जॉइंट ऐक्शन कमिटी के किसी भी बयान में किसी सदस्य का कोई जिक्र नहीं है। न ही इस बात का कहीं कोई जिक्र है कि प्रकरण के संज्ञान में आने के बाद कमिटी ने कोई मीटिंग की जिसमें उक्त बयान जारी करने का निर्णय किया गया। उस मीटिंग में कौन-कौन लोग उपस्थित थे इसका भी जिक्र नहीं है क्योंकि मीटिंग का ही कोई जिक्र नहीं है। इससे पूरा मामला संदिग्ध प्रतीत होता है और बयान किसी एक सदस्य द्वारा लिखा गया जान पड़ता है।

2- प्रकरण के सन्दर्भ में समूह की महिला सदस्यों की तरफ से जारी बयां में भी किसी महिला सदस्य का न तो उल्लेख है और न ही बयान पर हस्ताक्षर। कमिटी का आचरण इससे भी संदिग्ध दिखाई देता है।

3- कमिटी ने ऐसे प्रकरणों के लिए जो आतंरिक शिकायत कमिटी का गठन किया है उसके सदस्य पूर्व से ही समूह की गतिविधियों से जुड़ी या जुड़े रहे हैं। इसलिए उनसे इस या ऐसे किसी प्रकरण में जॉइंट ऐक्शन कमिटी के हितों के विरुद्ध जाकर कार्यवाही की कोई उम्मीद करना बेमानी ही होगा। अच्छा तो ये होता कि वास्तव में कमिटी अगर न्याय की पक्षधर थी या है तो उसे पीड़िता के द्वारा नामित व्यक्तियों को सदस्य बनाया जाना चाहिए था ताकि इस या किसी भी पीड़िता को न्याय की उम्मीद रहे। यह तो वैसी ही बात लगती है कि हम ही चोर-हम ही कोतवाल।

4- इस पूरे प्रकरण का सबसे शर्मनाक और असंवैधानिक पहलू ये है कि पूरे प्रकरण में कमिटी ने खुद को ही न्यायाधीश घोषित कर लिया है। अंजली जिस बात का प्रतिकार कर रही हैं कि जो लोग बीएचयू के प्रफेसर एसके चौबे या एमजे अकबर के प्रकरण में एक प्रकार की कार्यवाही की बात करते हैं उसके लिए आंदोलन करते हैं वही लोग अपने समूह की महिला सदस्य के साथ समूह के ही एक पुरुष सदस्य द्वारा किये गए यौन उत्पीड़न के मामले में दूसरा रुख अख्तियार करते हैं जो इनका दोहरा चरित्र है।

5- कमिटी अपने स्पष्टीकरण में बार-बार इस बात का तो हवाला देती है कि पीड़ित सदस्य के लिए न्यायालय का दरवाजा खुला है लेकिन कमिटी स्वयं उस सदस्या को न्याय दिलाने के लिए किसी सक्षम संवैधानिक पीठ के सम्मुख बात रखने या यौन उत्पीड़कों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने की कोशिश नहीं करती। जिससे जॉइंट ऐक्शन कमिटी की लैंगिक समानता और सामाजिक निष्ठा जैसी बातें केवल कहानी ही लगती हैं।

बहरहाल अंजली चौबे का जॉइंट ऐक्शन कमिटी के ऊपर लगाए गए आरोपों से एक बात तो साफ है कि बीएचयू परिसर में काम कर रहे स्वघोषित छात्र समूहों के अंदरखाने व्यापक भ्रष्टाचार पल रहा है जिसकी खबर न तो बीएचयू प्रशासन को है और न ही जिला प्रशासन को।

क्या है जॉइंट ऐक्शन कमिटी

जॉइंट ऐक्शन कमिटी पहली बार तब चर्चा में आयी थी जब पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी के कार्यकाल में छात्राओं ने आंदोलन किया था। तब, यह माना जा रहा था कि आंदोलन के पीछे आईआईटी बीएचयू से निष्कासित मार्क्सवादी विचारधारा के कार्यकर्ता मैग्सेसे विजेता संदीप पांडेय का हाथ है, जिन्होंने विश्वविद्यालय में काम करने वाले विभिन्न छात्र समूहों को मिलाकर जॉइंट ऐक्शन कमिटी बनायी है। परिसर के बाहर इस समूह को पांडेय के पूर्व संगठन आशा ट्रस्ट से भी मदद मिलते रहने की चर्चा है।

कमिटी को रहा है कांग्रेस का समर्थन
कमिटी का संचालन करने वाला धन्नजय त्रिपाठी उर्फ़ धन्नजय शुग्गु कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से जुड़ा हुआ है। पिछले दिनों सीएए विरोधी आंदोलन में गिरफ्तार इस समूह से जुड़े लोगों से मुलाकात करने कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी विशेषरूप से बनारस आई थीं। प्रियंका को बनारस लाने की पहल पूर्व विधायक अजय राय ने की थी। एनएसयूआई से जुड़े तमाम छात्र इस समूह में सक्रिय हैं।