पूज्य श्री रामानुजाचार्य जी जयंती पर विशेष

पूज्य_श्री_रामानुजाचार्य_जी_जयंती 🙏
 
 जीवन परिचय 
 
∙ स्थान - तमिलनाडु के श्री पेरंबदूर में विक्रम संवत्‌ 1074 को रामानुजाचार्य का जन्म हुआ
∙ पिता- केशवाचार्य
∙ माता- कान्तिमती  
∙ बचपन से ही #रामानुजचार्य की बुद्धि अत्यंत विलक्षण थी
∙ 15 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने सभी शास्त्रों का गहन अध्ययन कर लिया
∙ 16 वर्ष की आयु में इनका विवाह हुआ
∙  पत्नी का नाम रक्षम्बा  
∙  23 वर्ष की आयु में गृहस्थ आश्रम त्यागकर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली
 
🚩  #श्री_रामानुजाचार्य और सामाजिक समरसता


∙ श्री रामानुजाचार्य ने हिन्दू समाज के पिछड़े वर्ग की पीड़ा और उपेक्षा को ह्रदय से अनुभव किया
∙ उन्होंने लोगों की आलोचना के बावजूद सभी वर्गों के लिए सर्वोच्च आध्यत्मिक उपासना के द्वार खोल दिए
∙ इस कार्य के लिए उनको अनेक स्थानों पर भारी विरोध का सामना करना पड़ा, किन्तु न व डरे, न झिझके और न ही रुके
∙ श्री रामानुजाचार्य, सामाजिक दृष्टि से वर्णव्यवस्था के अन्दर किसी भी प्रकार के भेदभाव को स्वीकार नहीं करते थे
∙ शुद्र गुरुओं का शिष्यत्व स्वीकार किया तथा चांडाल के हाथ से भोजन करने में भी श्री रामानुजाचार्य ने कभी संकोच नही किया|
∙ उन्होंने वैष्णव मत के प्रचार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया
∙ श्री रामानुजाचार्य वृद्धावस्था में स्नान करने को जाते समय दो ब्राह्मण के कन्धों पर हाथ रखकर जाते थे और जब स्नान कर वापस आते थे तब दो चर्मकारों के कन्धों का सहारा लेकर आते थे. लोगों ने जब इस पर आपत्ति की तो उन्होंने कहा – अरे ! मन की कलुषता को समाप्त करो’ उनका मानना था कि
 
न जाति: कारणं लोके गुणा: कल्याणहेतव :
अर्थात जाति नहीं, वरन गुण ही कल्याण का कारण है
 
∙ श्री रामानुजाचार्य ने श्री रंगपट्टम के उत्तर में मेलुकोट (दक्षिण बद्रिकाश्रम) नामक स्थान तिरूनारायण पेरूमाल वैष्णव मंदिर के द्वार पंचमों (शूद्रों से भी दूर कहे जाने वाले लोगों) के लिए खोल दिए|
∙ श्री रामानुजाचार्य कहते हैं की क्षुद्र, निराश्रय मानव भी अपनी भक्ति, समर्पण और ज्ञान के सहारे ईश्वर को प्राप्त कर लेता है
∙ इस व्यापक भावना ने सामाजिक सद्भाव तथा सहिष्णुता को जन्म दिया
∙ उन्होंने वर्ण और जाति के भेदभाव से दूर एक आदर्श समाज व्यवस्था निर्माण करने का प्रयास किया


🙏श्री रामानुजाचार्य के गुरु श्री तिरूक्कोटीयुर नांबी ने उन्हें आठ अक्षरों का मंत्र ‘ॐ नमो नारायणाय’ दिया और इस मंत्र को गुप्त रखने के लिया कहा इस मंत्र से दुःख कष्टों से मुक्ति मिल जाती है 
🙏श्री रामानुजाचार्य ने रंगम के विष्णु मंदिर के गोपुर के ऊपर चढ़कर गाँव के सभी वर्ग के लोगों को एकत्रित सबको यह मंत्र बता दिया 
🙏श्री रामानुजाचार्य ने कहा भाइयों-बहनों यदि तुम संसार के दुख कष्टों से मुक्ति पाना चाहते हो तो तीन बार इस मंत्र का उच्चारण करके धन्य हो जाओ|
 
 🚩 श्री रामानुजाचार्य एवं एकता और अखंडता


∙ श्री रामानुजाचार्य अपने काल के अत्यंत विद्वान, साहसी तथा सामाजिक दृष्टिकोण से उदार धार्मिक पथ प्रदर्शक थे
∙ भारत की यात्रा में वाराणसी, अयोध्या, बद्रीनाथ, जम्मू-कश्मीर, जगन्नाथपुरी और द्वारिका आदि तीर्थस्थलों पर अपने आध्यात्मिक और सामाजिक विचारों को लेकर गए
∙ प्रत्येक मनुष्य को समान मानने के उनके इस मानवीय गुण की स्वामी विवेकानंद ने ह्रदय से प्रशंसा की
∙ देश भ्रमण तथा साहित्य सृजन – श्री रामानुजाचार्य ने लोकजागरण का आधार भक्ति को ही मान्य किया और भक्ति के प्रचार-प्रसार के लिए व्यापक प्रयास किया
∙ ज्ञान और भक्ति की गंगा बहाते हुए हिन्दू संस्कृति का पुनरूत्थान तथा सामाजिक जागरण का महान कार्य किया 
 
🚩 श्रीरामानुजाचार्य द्वारा रचित ग्रन्थ, भाष्य


∙ मूल ग्रन्थ : ब्रह्मसूत्र पर भाष्य 'श्रीभाष्य' एवं 'वेदार्थ संग्रह'
∙ गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था - ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना
∙ अपने शिष्य ‘कुरंत्तालवार’ को लेकर वे श्रीनगर गए तथा वापस श्रीरंगम आकर श्रीभाष्य लिखने लगे
∙ उन्होंने वेदांत दीप, वेदांत सार, वेदार्थ संग्रह, गीता भाष्य, नित्य ग्रन्थ तथा  गद्य त्रयम (शरणागति गद्य, श्री रंगम गद्य, श्री बैकुंठ गद्य) की रचना की
∙ विशिष्टाद्वैत दर्शन : रामनुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के सम्बन्ध में तीन स्तर माने गए हैं- ब्रह्म अर्थात ईश्वर, चित् अर्थात आत्म, तथा अचित अर्थात प्रकृति
∙ सामाजिक जागरण का महान कार्य करते हुए श्री रामानुजाचार्य 120 वर्ष की आयु में ब्रह्मलीन हुए