मार्च 2017, बीजेपी का 14 सालों का वनवास आखिरकार खत्म हो गया और सूबे की कमान सौंपी गई संन्यासी से नेता बने गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ को... उत्तर प्रदेश की राजनीति के कई कद्दावर नेताओं को पीछे छोड़कर जब आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तो बीजेपी के अंदर से ही आवाज मुखर होने लगी कि आखिर सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र को संभालने वाला शख्स कट्टर हिंदू की छवि के साथ प्रदेश को कैसे संभालेगा।
समय बीता, काम करने के खास तरीके के साथ सीएम योगी ने 19 मार्च 2020 को अपने तीन साल पूरे किए और बना दिया एक ऐसा रेकॉर्ड जो बीजेपी सूबे में अबतक नहीं बना पाई थी। पहली बार बीजेपी के किसी मुख्यमंत्री ने अपने तीन साल पूरे किए... कई तरह के आरोपों के बीच सीएम योगी की सख्त छवि ने जहां देशभर के लोगों को आकर्षित किया, वहीं उनके काम करने के अंदाज ने सूबे के सभी मुख्यमंत्रियों को कहीं पीछे छोड़ दिया। हम आपको बता रहे हैं वे बातें जो सीएम योगी को प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके अन्य नेताओं से अलग खड़ा करती हैं...
योगी आदित्यनाथ शायद सूबे के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ब्यूरोक्रेट्स से प्रजेंटेशन लेना शुरू किया। बिना रात-दिन देखे जब मुख्यमंत्री खुद काम करने लगें तो जाहिर है कि इससे ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली में बदलाव आएगा ही। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि यूपी में मायावती ही थीं जो ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण रखने की कोशिश करती थीं लेकिन उसमें उनकी जातिगत निष्ठा आड़े आ जाती थी। सीएम योगी ने पीएम मोदी के 'सबका साथ-सबका विकास' के मंत्र को ब्यूरोक्रेसी में भी उतारा और किसी तरह का भेदभाव नहीं किया, जिससे ब्यूरोक्रेट्स भी इस बात को समझ गए कि वर्तमान मुख्यमंत्री पर किसी तरह का लोभन-प्रलोभन काम नहीं करेगा।
;लंबे समय के बाद ऐसा हुआ जब केन्द्र और उत्तर प्रदेश, दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार आई। बीजेपी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 1997 में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे तो बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से उनका टकराव बना रहा। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा गया। उस दौरान कल्याण सिंह ने पार्टी तोड़ने की कोशिश की पर वह सफल नहीं हो पाए। वहीं सीएम योगी को मुख्यमंत्री की कुर्सी केन्द्रीय नेतृत्व ने ही दी। योगी के करीबी बताते हैं कि वह कभी मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं रखते थे, लेकिन जब केन्द्रीय नेतृत्व ने कहा तो वह इस जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार हो गए। उनकी छवि और स्पष्टवादिता ही थी कि वह बीजेपी के राष्ट्रीय स्टार प्रचारक भी बन गए। और तो और, बीजेपी का एक धड़ा उन्हें पीएम मोदी के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर भी प्रोजेक्ट करने की मांग करने लगा है।</p>
योगी आदित्यनाथ शायद सूबे के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ब्यूरोक्रेट्स से प्रजेंटेशन लेना शुरू किया। बिना रात-दिन देखे जब मुख्यमंत्री खुद काम करने लगें तो जाहिर है कि इससे ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली में बदलाव आएगा ही। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि यूपी में मायावती ही थीं जो ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण रखने की कोशिश करती थीं लेकिन उसमें उनकी जातिगत निष्ठा आड़े आ जाती थी। सीएम योगी ने पीएम मोदी के 'सबका साथ-सबका विकास' के मंत्र को ब्यूरोक्रेसी में भी उतारा और किसी तरह का भेदभाव नहीं किया, जिससे ब्यूरोक्रेट्स भी इस बात को समझ गए कि वर्तमान मुख्यमंत्री पर किसी तरह का लोभन-प्रलोभन काम नहीं करेगा।
अयोध्या का दीपोत्सव हो या मथुरा का कृष्णोत्सव, सीएम योगी ने धार्मिक कार्यक्रमों को प्रदेश के उत्सव के तौर पर प्रतिस्थापित किया। इन कार्यक्रमों के अलावा वाराणसी में देव दीपावली, बरसाने में रंगोत्सव जैसे आयोजन भी देश के साथ-साथ विदेशों में भी चर्चा का केन्द्र बने। योगी सरकार ने सावन के महीने में कांवड़ियों के रूट पर मांस की बिक्री पर रोक लगाने के साथ ही उनपर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने का भी फैसला किया। कांवाड़ियों की सुरक्षा के लिए ड्रोन कैमरे से लेकर ऐंटी टेररिस्ट स्क्कॉड से निगरानी करवाने से लेकर गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया गया। वहीं प्रयागराज के कुंभ की साफ-सफाई से लेकर वहां की अन्य व्यवस्थाओं ने जहां कई रेकॉर्ड बनाए, वहीं इस बात को भी साबित किया कि सरकार भारत की आस्था को कार्यपद्धति के केन्द्र से नहीं हटने देगी।
परंपरा हो या छवि, फर्ज रहा सबसे पहले
कट्टर हिंदुत्व वाली छवि हो या बीते कई सालों से चली आ रही परंपरा, सीएम योगी ने अपनी जिम्मेदारी और 'सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास' के मंत्र से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने अगर कावंडियों पर फूल बरसवाए तो मुस्लिमों को भी इस बात पर भरोसे में लिया कि प्रदेश में मुहर्रम का जुलूस निकालने को लेकर भी प्रशासन पूरा सहयोग करेगा। साथ ही उन्होंने सभी को चेतावनी भी दी कि धर्म, जाति से ऊपर उठकर कानून से खिलवाड़ करने वालों को कतई बख्शा नहीं जाएगा। बात फर्ज की करें तो सबसे ताजा उदाहरण कोरोना से लड़ाई का है, जब सीएम योगी ने वर्षों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए लॉकडाउन में गोरक्ष पीठ में कन्या पूजन कार्यक्रम आयोजित नहीं किया।
अयोध्या का दीपोत्सव हो या मथुरा का कृष्णोत्सव, सीएम योगी ने धार्मिक कार्यक्रमों को प्रदेश के उत्सव के तौर पर प्रतिस्थापित किया। इन कार्यक्रमों के अलावा वाराणसी में देव दीपावली, बरसाने में रंगोत्सव जैसे आयोजन भी देश के साथ-साथ विदेशों में भी चर्चा का केन्द्र बने। योगी सरकार ने सावन के महीने में कांवड़ियों के रूट पर मांस की बिक्री पर रोक लगाने के साथ ही उनपर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने का भी फैसला किया। कांवाड़ियों की सुरक्षा के लिए ड्रोन कैमरे से लेकर ऐंटी टेररिस्ट स्क्कॉड से निगरानी करवाने से लेकर गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया गया। वहीं प्रयागराज के कुंभ की साफ-सफाई से लेकर वहां की अन्य व्यवस्थाओं ने जहां कई रेकॉर्ड बनाए, वहीं इस बात को भी साबित किया कि सरकार भारत की आस्था को कार्यपद्धति के केन्द्र से नहीं हटने देगी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नोएडा दौरे से एक अजीब सा अपशकुन जुड़ा रहा है। माना जाता था कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा आता है, उसकी कुर्सी चली जाती है। बीएसपी की मायावती हों या एसपी के अखिलेश, कोई भी मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नोएडा सीमा में गलती से भी आना नहीं चाहता जाता था। लेकिन बीते तीन साल में सीएम योगी लगातार नोएडा जाते रहे। उनके भगवा वेश को लेकर जहां लोग उन्हें सीधे हिंदू धर्म से जोड़कर देखते थे, वहीं उनके नोएडा जाने के फैसले से साफ हो गया कि वह धार्मिक तो हैं, लेकिन अंधविश्वासी नहीं।
सीएए विरोधी आंदोलन हो या सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शनकारियों के पोस्टर-होर्डिंग लगाने का फैसला, सीएम योगी ने ऐसे मामलों में एकबार जो फैसला ले लिया, उसे फिर कोई नहीं बदल पाया। सीएए विरोधी आंदोलन पर पहले तो उन्होंने स्थानीय प्रशासन को महिलाओं को समझाने के निर्देश दिए लेकिन जब वे नहीं मानीं तो साफ कह दिया कि इनसे कोई बात नहीं की जाएगी। वहीं सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में शामिल लोगों की पहचान के बाद नुकसान की भरपाई के लिए उनके पोस्टर-होर्डिंग सार्वजनिक स्थानों पर लगाने के निर्देश दिए।
इसके विरोध में जब प्रदर्शनकारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया तो योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। तीन सालों में सीएम योगी के चेतावनी भरे लहजे में दिए गए स्पष्ट बयान भी काफी चर्चा में रहे। उपद्रवियों से क्षतिपूर्ति वसूली के लिए उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बना, जिसने अध्यादेश लाकर कानून बनाया। 13 मार्च 2020 को हुई कैबिनेट मीटिंग में उत्तर प्रदेश रिकवरी पब्लिक ऐंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश पारित किया गया। योगी सरकार के इस कदम ने भी जमकर तारीफें बटोरीं।
सीएम योगी ने कानून-व्यवस्था पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाई। इसी का नतीजा था कि पंजाब एवं हरिणाया हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की बेहतर कानून-व्यवस्था का विशेष उल्लेख किया। आंकड़ों के लिहाज से 2016 की तुलना में 2019 में प्रभावी अंकुश लगता दिखा। हालांकि विपक्ष हमेशा इन आंकड़ों पर सवाल उठाता रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि योगी सरकार में एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी की जाती है, जिसकी वजह से आंकड़ों में क्राइम कम होता दिखता है। वहीं प्रशासनिक जानकारों की राय भी इस मुद्दे पर विपक्ष से मिलती-जुलती ही है। हालांकि जानकार इस मामले में अखिलेश और योगी आदित्यनाथ को एक ही जगह पर पाते हैं, वहीं मायावती के शासन को वह इस मामले में कहीं बेहतर देखते हैं। लेकिन माया के शासन में थाना स्तर से लेकर शासन स्तर तक जो जातिगत माहौल रहता था, वह अब दिखाई नहीं देता है। हाल ही में नोएडा और लखनऊ में लागू किए गए कमिश्नरी सिस्टम ने भी सीएम योगी के बड़े फैसले लेने वाले प्रशासक की छवि पर मुहर लगाई है।
घोटालों पर लगाम
बीते तीन सालों में योगी सरकार के कार्यकाल में एक भी घोटाला नहीं हुआ। सीएम योगी ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए विभिन्न विभागों के 700 से ज्यादा भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्रवाई करते हुए उन्हें या तो जबरन रिटायरमेंट दिया या फिर सस्पेंड किया। समाज में इसका भी अच्छा मैसेज गया।
एजुकेशन सिस्टम में व्यापक सुधार
यूपी में कल्याण सिंह को एजुकेशन सिस्टम में सुधार लाने के लिए सख्त कदम उठाने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जाता रहा है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, एजुकेशन सिस्टम में सुधार के लिए सीएम योगी कल्याण सिंह से भी कहीं आगे निकल गए। परीक्षा से नकल को हटाने के लिए सीएम योगी ने टेक्नॉलजी का जमकर सहारा लिया। इसी के तहत परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरा और वॉयस रिकार्डर व्यवस्था की गई। प्रदेश में 517 स्मार्ट क्लास की शुरुआत की गई। वहीं टेक्नॉलजी और आधुनिक शिक्षा से दूर रहने वाले मदरसों समेत यूपी बोर्ड के सभी विद्यालयों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू किया गया।