गोमूत्र गोमूत्र के विरुद्ध अभियान भी बिना परीक्षण का अन्धविश्वास ही है।

 


अंग्रेजी शासन में सभी दलों के नेता वकील थे जो अपराधियों को छुड़ाना सबसे बड़ी उपलब्धि मानते थे। उनके हाथ में अंग्रेज शासन दे कर चले गये तो अपराधियों का स्वर्ग युग आ गया। जेल में वही जाता है जिसने सबसे छोटा अपराध किया हो। छोटी चोरियों में सन्देह के आधार पर जिनको जेल भेजा जाता है वे बिना आरोप पत्र के भी जेल में ८-१० वर्ष तक रह जाते हैं।


   आतंकवादी या दंगाई हो उसकी सेवा में आधी रात,को भी सुप्रीम कोर्ट खुल जाता है। इतनी ही जटिल भारत की स्वास्थ्य समस्या जो विश्व कि सबसे जटिल समस्या है। अभी तक खाद्य या दवा में मिलावट के लिये कोई सजा नहीँ हुई है। यह भ्रष्ट नेताओं को दण्डित करने से भी कठिन है। 
इसके समाधान में सबसे बड़ी कठिनाई है कि भारत के बुद्धिजीवी या गिरोह वाले वैज्ञानिक भी दलगत भक्ति के अनुसार ही सोचते हैं। अभी ५०० वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है कि गोमूत्र के औषधीय गुण पर शोध बन्द किया जाये। इसी प्रकार आइन्सटीन के सापेक्षवाद के सिद्धान्त के विरुद्ध ५० जर्मन वैज्ञानिकों ने सरकार को पत्र लिखा था। आइन्सटीन ने केवल इतना कहा कि यदि उनका सिद्धान्त गलत होता तो एक ही व्यक्ति की टिप्पणी पर्याप्त थी।
गोमूत्र के विरोधी नकली वैज्ञानिकों को यह चिन्ता नहीं है कि किस गाय का दूध अधिक उपयोगी है, A1 या A2 दूध के क्या गुण हैं। देशी गाय का दूध दुर्लभ है, विदेशी गाय के दूध में भी मिलावट है।


    कोई कितना भी सन्यासी वेष में घी बेचे, विश्वास नहीँ होता कि वह असली है। गो उत्पादों का हजारों वर्षों से प्रयोग हो रहा है तथा आज भी पूरे विश्व का भोजन उन पर निर्भर है। हो सकता है कि करोना वायरस या कैंसर गो मूत्र से पूरी तरह ठीक नहीं हो, पर उससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने में कोई सन्देह नहीं है। यह हजारों वर्षों के प्रयोग से सिद्ध है, यदि वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा विज्ञान की शब्दावली में इसकी व्याख्या हो सके तो इसमें क्या हानि है?
*विज्ञानवादी कई मामलों में भ्रष्ट तथा अन्धविश्वासी हैं, गोमूत्र के विरुद्ध अभियान भी बिना परीक्षण का अन्धविश्वास ही है।* किसी भी छोटी बीमारी में डाक्टर के पास जाने पर वह अन्य सभी पैथोलाॅजिस्ट की रिपोर्ट अस्वीकार कर अपने खास व्यक्ति से जांच करवाता है। यदि सभी वैज्ञानिक हैं तो तीन प्रकार के जांच की क्या आवश्यकता है? १९८० में अभियान चला था कि अन्य सभी रिफाइंड तेल सरसों तेल से अच्छे है। १९८० में ओड़िशा के एक कुलपति के परिवार के १२ लोगों ने केवल इसी पर पीएचडी की थी।


   मैंने उनसे पूछा कि उनके घर में अचार तथा सब्जी के लिए सरसों तेल का प्रयोग बन्द हो गया होगा तो उनको समझ में नहीं आया। 
दूध, घी, तेल में मिलावट तथा नकली रिसर्च है। हर सब्जी में रासायनिक खाद, हारमोन, कीटनाशक आदि मिले हुए हैं तथा अन्य रसायन से उनकी धुलाई होती है। उनको खाने से रोग बढ़ रहे हैं तथा शुद्ध सब्जी खोजना प्रायः असम्भव है। दाल, चावल आदि में पालिश भी मारने के लिये काफी हैं। पर यूनियन वाले वैज्ञानिक केवल इसलिए चिन्तित है कि नकली दवा के बदले कहीं गोमूत्र से रोग दूर न हो जाए।



सरकारी अनुमान के अनुसार ७०% दूध में मिलावट रहती है। हर वर्ष पर्व त्योहार में टीवी पर हजारों टन नकली घी तेल आदि की जब्ती दिखाई जाती है। पर कभी केस नहीँ होता। यह छोटे चोर नहीं है जिनको कोर्ट से सजा हो जाये। 
दवा का भी यही हाल है।     


दोतिहाई से अधिक दवा नकली है। असली दवा में भी डाक्टर जिस कम्पनी की दवा लिखते हैं, वह उनके निकट वाली दुकान में ही मिल सकता है। इस परिस्थिति में बिना मिलावट की कुछ ही दवा बची हुई हैं जिससे भारत के लोग बचे हुए हैं-दूध, गोमूत्र, मधु, बेल तथा उसका पत्ता, तुलसी पत्र, आंवला, नीम आदि। वैज्ञानिक गिरोह अन्तिम बचे हुए ओषधियों को समाप्त करना चाहता है।


गोलोक विहारी राय 


(राष्ट्रीय महामंत्री)


राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच