गोलोक बिहारी राय की बेहतरीन नई कविता पढ़े "बेसब्र-ठहराव"

 


तेज रफ़्तार से चलती
दौड़ती हाँफती
कभी सड़कों पर, कभी मेट्रो में
आज वही बदहवास,सहमी हुई 
थमी हुई सी ज़िन्दगी
घरों में सिमट गई है
कहाँ गई वो तेज़-रफ्तार
ज़िन्दगी !
जिसके साथ चलने की
ख्वाहिश में
रिश्ते नाते खो जाते थे
हर चीज़ कहीं पीछे छूट जाती थी..


ये जीवन इतनी धीमी गति से
बढ़ रहा है ...
वक़्त ने भी अपनी रफ्तार
धीमी कर दी है..
घटते हुये कोरोना के कालचक्र ने 
उसी दौड़ती-भागती ज़िन्दगी को 
आज स्तब्ध कर दिया है 
ठहराव ला दिया है।