डॉ. सीमा सिंह ने कहा-व्यंग्य का जन्म अपने समय की विद्रूपताओं के भीतर से उपजे असंतोष से होता है। विद्वानों में इस बात पर मतभेद लगातार बना रहा है कि व्यंग्य को एक अलग विधा माना जाए या कि वह किसी भी विधा के भीतर 'स्पिरिट' के रूप में मौजूद रहता है। उन्होंने अपने अवधी लोकगीतों पर शोध के विषय में बताया और एक सुंदर गीत भी सुनाया।
उक्त बातें JNU की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सीमा सिंहने सीतापुर में आयोजित हिन्दी सभा के वार्षिकोत्सव में एक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए कही
व्यंग्य एक माध्यम है जिसके द्वारा व्यंग्यकार जीवन की विसंगतियों, खोखलेपन और पाखंड को दुनिया के सामने उजागर करता है-राज्य सूचना आयुक्त सुभाष चन्द्र सिंह
सीतापुर ।हिन्दी सभा के वार्षिकोत्सव में साहित्यिक पंडानामा के यशस्वी लेखक भूपेन्द्र दीक्षित से व्यंग्य के विविध आयामों पर चर्चा हुई और वरिष्ठ साहित्यकार महेंद्र भीष्म जी की पुस्तक "किन्नर कथा" पर परिचर्चा हुई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश सूचना आयुक्त श्री सुभाष चन्द्र सिंह जी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आदरणीय सोम दीक्षित ने की और मुख्य वक्तव्य सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारअरुणेश मिश्र ने दिया। संगोष्ठी का विषय था-व्यंग्य के लिए आवश्यक है विसंगतियों को पकड़ना।इस विषय पर बोलते हुए साहित्यिक पंडा नामा के लेखक भूपेन्द्र दीक्षित ने कहा-व्यंग्य को लेकर बहुत भ्रम फैले हुए हैं। अभी तक व्यंग्य की समीक्षा की कोई भाषा ही नहीं खोजी जा सकी है।
मजा, मस्त बखिया उधेड़ना, फुचडे उडाना जैसे शब्दों से व्यंग्य की समीक्षा की जाती है। हास्य और व्यंग्य को अलग करके देखा ही नहीं जाता। आदमी की अगर विवेचना कीजिए, तो यह कहा जा सकता है कि हंसी जब आती है तो मन में कोई मालिन्य नहीं रहता और जब हंसी आती है तो मनुष्य को आराम महसूस होता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश सूचना आयुक्त श्री सुभाष चन्द्र सिंह जी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आदरणीय सोम दीक्षित ने की और मुख्य वक्तव्य सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारअरुणेश मिश्र ने दिया।
राज्य सूचना आयुक्त सुभाष चन्द्र सिंह ने हिंदी सभा को बधाई देते हुए कहा कि व्यंग्य एक माध्यम है जिसके द्वारा व्यंग्यकार जीवन की विसंगतियों, खोखलेपन और पाखंड को दुनिया के सामने उजागर करता है। जिनसे हम सब परिचित तो होते हैं किंतु उन स्थितियों को दूर करने, बदलने की कोशिश नहीं करते बल्कि बहुधा उन्हीं विद्रूपताओं-विसंगतियों के बीच जीने की, उनसे समझौता करने की आदत बना लेते हैं। व्यंग्यकार अपनी रचनाओं में ऐसे पात्रों और स्थितियों की योजना करता है जो इन अवांछित स्थितियों के प्रति पाठकों को सचेत करते हैं।
संगोष्ठी का विषय था-व्यंग्य के लिए आवश्यक है विसंगतियों को पकड़ना।इस विषय पर बोलते हुए साहित्यिक पंडा नामा के लेखक भूपेन्द्र दीक्षित ने कहा-व्यंग्य को लेकर बहुत भ्रम फैले हुए हैं। अभी तक व्यंग्य की समीक्षा की कोई भाषा ही नहीं खोजी जा सकी है। मजा, मस्त बखिया उधेड़ना, फुचडे उडाना जैसे शब्दों से व्यंग्य की समीक्षा की जाती है। हास्य और व्यंग्य को अलग करके देखा ही नहीं जाता। आदमी की अगर विवेचना कीजिए, तो यह कहा जा सकता है कि हंसी जब आती है तो मन में कोई मालिन्य नहीं रहता और जब हंसी आती है तो मनुष्य को आराम महसूस होता है।
महेन्द्र भीष्म ने किन्नरों की पीड़ा के विषय में सबको बताया। उन्होंने कहा-अच्छा व्यंग्य करुण होता है और करुणा की धारा ही व्यंग्य को हास्य से अलग करती है। जितने भी अच्छे व्यंग्यकार हैं, गंभीर लेखन करते हैं।उनमें हास्य का तत्व उतना नहीं होता, जितना करुणा का। आज हमें किन्नरों के विषय संवेदनशील होने की महती आवश्यकता है।
" alt="" aria-hidden="true" />डॉ. सीमा सिंह ने कहा-व्यंग्य का जन्म अपने समय की
दीक्षित जी ने कहा-जैसा कि 'व्यंग्य' नाम से ही स्पष्ट है, इस विधा में सामाजिक विसंगतियों का चित्रण सीधे-सीधे (अभिधा में) न होकर परोक्षतः (व्यंजना के माध्यम से) होता है। इसीलिए व्यंग्य में मारक क्षमता अधिक होती है। संस्कृत साहित्य में वक्रोक्ति और व्यंग्य,हास्य बहुतायत से मिलता है।
डॉ. ज्ञानवती ने बताया-हिंदी में संत-साहित्य से व्यंग्य का आरंभ माना जा सकता है। कबीर व्यंग्य के आदि प्रणेता हैं। उन्होंने मध्यकाल की सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्यपूर्ण शैली में प्रहार किया है। जाति-भेद, हिंदू-मुस्लमानों के धर्माडंबर, गरीबी-अमीरी, रूढ़िवादिता आदि पर कबीर के व्यंग्य बड़े मारक हैं।
आर्यकन्या इन्टर कालेज समेत नगर के तमाम प्रतिष्ठित कालेजों के प्रधानाचार्य, शिक्षक, छात्र और छात्राओं का जमावड़ा लालबाग पार्क स्थित हिन्दी सभा पर लगा। डा• ज्ञानवती ने हिन्दी सभा की पूरी टीम की सराहना करते हुए कहा कि आशीष मिश्रा के कार्यकाल में हिंदी सभा जीवन्त और जाग्रत हो उठी है। यह अत्यंत शुभ संकेत है।
कार्यक्रम में सर्वश्री कार्तिकेय शुक्ल, रजनीश मिश्र, झंकार नाथ शुक्ला, योगेन्द्र पांडेय, भगवती गुप्ता,मनोज दीक्षित, यज्ञदत्त मिश्र, अवधेश शुक्ला, रमा रमण त्रिवेदी, अशोक अविरल, अभिषेक, सुधांशु, आराध्य शुक्ल, रमाकांत मिश्र, गंगास्वरुप मिश्र, राजकुमार तिवारी, भूपेंद्र दीक्षित पत्रकार, रामकिंकर पांडेय, मोनिका आनंद, मुकेश अग्रवाल, अलका अवस्थी, ऊषा पांडेय, प्रभा सरीन, माधुरी सिंह, अदा खान, कल्पना शुक्ल, अमीषा, अनीता, मोनिका श्रीवास्तव, अमिय किरण अवस्थी आदि विद्वानों की उपस्थिति थी। कार्यक्रम का संचालन डा• ज्ञानवती ने किया। कार्यक्रम के अंत में अतिथियों, विद्वानों और छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया गया