मुक्ति संग्राम: 13 दिनों तक चली लड़ाई के बाद आज ही के दिन पाक ने भारत के आगे टेके घुटने


केवल 13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के आगे पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े और तभी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा बांग्लादेश बन गया.


16 दिसंबर 1971. महज 13 दिनों तक चली भारत-पाक की लड़ाई में 95000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था. इसी के साथ बांग्लादेश बना. इस युद्ध में सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेत्रपाल ने उच्चतम वीरता और साहस का परिचय दिया था.


इस विजय गाथा की शुरूआत कुछ ऐसे हुई थी. तारीख थी 25 फरवरी 1948, जब पाकिस्तानी संसद में उर्दू और अंग्रेजी के साथ बांग्ला को भी मान्यता देने की बात चली. तत्कालीन प्रधानमंत्री लिकायत अली खान ने तुरंत ही बात को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि बांग्ला को मान्यता देने की बात का मजाक भी उड़ाया. ये कोई मामूली घटना नहीं, बल्कि यहीं से शुरुआत हुई एक देश के जन्म की, वो देश जिसे हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं. बांग्लादेश की आजादी में भारत की अहम भूमिका रही. आज ही से शुरू युद्ध में भारतीय सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान को चारों ओर से घेर लिया और जन्म हुआ बांग्लादेश का. क्यों एक ही देश के दो हिस्से हुए, इसके पीछे लगभग तीन दशकों की कहानी है.


पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के जुल्म इतने बढ़ गए थे कि भारतीय फौज ने पाकिस्तानी सेना पर हमला बोल दिया. तारीख थी 3 दिसंबर 1971. केवल 13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के आगे पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े और तभी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा बांग्लादेश बन गया. इस युद्ध और आजादी के पीछे जनसंहार और मानसिक-शारीरिक-आर्थिक यातनाओं की लंबी-चौड़ी पृष्ठभूमि रही. हालांकि भारतीय सेना के दखल के पहले ही पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान की ज्यादतियों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था. आंतरिक युद्ध साल 1971 में मार्च से शुरू हो गया था. तब के पूर्वी पाकिस्तानवासियों का मानना है कि इस दौरान बर्बर सेना ने 30 लाख से भी ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. आजादी की ये लड़ाई इतिहास में मुक्ति संग्राम के नाम से दर्ज है.


अविभाजित भारत से 14 अगस्त को धार्मिक आधार पर पाकिस्तान बना. लेकिन इसी पाकिस्तान में भी भाषा-बोली, खान-पान और मान्यताओं को लेकर भारी फर्क था. एक हिस्सा पंजाबी, सिंधी बोलता तो दूसरे में बांग्लाभाषी रहते. पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में विषमताएं इतनी ज्यादा थीं कि जल्द ही राजनैतिक रूप से ज्यादा समृद्ध पश्चिमी हिस्सा पूर्वी हिस्से पर नियंत्रण की कोशिश करने लगा, वहां के लोगों को चुनाव में हिस्सा लेने से रोका जाता, राजनैतिक पद नहीं मिलते थे. ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग बनाते हुए अपने हिस्से के लोगों की बात सामने रखने की कोशिश की. साल 1970 में आम चुनाव हुए, जिसमें अवामी लीग को जबर्दस्त कामयाबी मिली, लेकिन पश्चिमी तानाशाही इस कदर थी कि उन्हें पद देने की बजाए जेल में डाल दिया गया


अपने प्रिय नेता को प्रधानमंत्री बना देखने का सपना देख रहे लोगों में पहले ही गुस्सा भड़का हुआ था. इसपर तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्या खान की ज्यादतियों ने उन्हें और उकसा दिया. उनके आदेश पर जनरल टिक्का खान ने सैनिकों को बांग्लाभाषी पाकिस्तानों को जहां दिखें, मार देने का आदेश दिया. खासकर पूर्वी हिस्से में रहने वाली गैर-मुस्लिम निशाने पर थे. लाखों लोगों के रक्तपात का आदेश देने वाले जनरल खान को इतिहास में बंगाल का कसाई भी कहा जाता है. हत्याकांड पर जनरल ने कहा था, 'महज 30 हजार बंगाली ही तो मरे हैं, क्या हो गया.'


नेता के साथ जुल्म के भड़के लोगों को शांत करने की बजाए सरकार जनसंहार पर उतर आई. पूर्वी लोगों को भारत का एजेंट कहा जाना लगा और ऑपरेशन सर्च लाइट चलाकर उन्हें मारने का अभियान चल पड़ा. निहत्थे, मासूम लोगों को घर से निकाल-निकालकर मारा गया. औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार के दौर चलने लगे. बड़ी संख्या में ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों को गोलियों से भून दिया गया. आज भी ढाका मस्जिद के पास एक बड़ी सी कब्र है जिसमें दफ्न हजारों लाशें उस दौर का स्मारक हैं.


पश्चिमी पाकिस्तान की बर्बरता और रक्तपात से जन्म हुआ मुक्ति वाहिनी का. इसी दौरान पड़ोसी मुल्क की अस्थिरता का असर पड़ा भारत पर. वहां से लोग भाग-भागकर भारत की शरण लेने लगे. माना जाता है कि उसी दौर में लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत आए. भारत ने बॉर्डर खोल दिए थे, प्रवासी कैम्प बनवा दिए थे और शरणार्थियों की देखभाल के लिए काफी आर्थिक-राजनैतिक प्रयास हो रहे थे.


इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ये मामला पहले वैश्विक पटल पर उठाया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. दूसरी ओर जनसंहार जारी था. लगातार विस्थापन और क्रूरता को देखते हुए भारत ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देने का फैसला किया. पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी पाकिस्तानी सैनिकों ने ही मुक्ति वाहिनी का रूप ले लिया था, जो गुरिल्ला युद्ध के जरिए आजादी पाने की कोशिश में था.


जनरल मानेकशॉ की अगुवाई में भारतीय सेना मुक्ति वाहिनी के साथ शामिल हुई. भारत की इस घोषणा के बाद 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर हमला बोल दिया लेकिन भारतीय सैनिकों ने तुरंत ही उन्हें सीमा से खदेड़ दिया. पाकिस्तानी सेना के हमले की प्रतिक्रिया में भारतीय सेना रणनीति के साथ बांग्लादेश की सीमा में घुसी और लगभग 15 हजार किलोमीटर के दायरे को अपने कब्जे में ले लिया. संघर्ष की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों ओर से लगभग 4 हजार सैनिक मारे गए.


जनरल मानेकशॉ की अगुवाई में भारतीय सेना मुक्ति वाहिनी के साथ शामिल हुई. भारत की इस घोषणा के बाद 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर हमला बोल दिया लेकिन भारतीय सैनिकों ने तुरंत ही उन्हें सीमा से खदेड़ दिया. पाकिस्तानी सेना के हमले की प्रतिक्रिया में भारतीय सेना रणनीति के साथ बांग्लादेश की सीमा में घुसी और लगभग 15 हजार किलोमीटर के दायरे को अपने कब्जे में ले लिया. संघर्ष की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों ओर से लगभग 4 हजार सैनिक मारे गए.