महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल कबीरवाणी ,भाव और दर्शन का मिश्रण

 


वाराणसी, 23 नवम्बर 2019: पावन नगरी वाराणसी के प्रतिष्ठित शिवाला और गुलेरिया घाट पर चले रहे चौथे महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल में संगीत, साहित्य, मंथन, ऐतिहासिक स्थलों की सैर, नौकायान और लजीज स्थानीय व्यंजनों के माध्यम से श्रोताओं ने  कबीर के भिन्न पहलुओं  के दर्शन किये .


आज फेस्टिवल की शुरुआत गुलेरिया घाट पर स्फूर्तिदायक संगीत  से हुई| सितार-वादक नीरज मिश्रा और दिल्ली के रहने वाले हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक उज्जवल नागर ने सुरीली तान छेड़कर, घाट पर सूर्योदय के ओजस्वी रंग मिला दिए| उन्होंने कबीर को 'गुरु' का पद दिया, जो जीवन की मंझधार में सही राह दिखाता है| नीरज मिश्रा ने सितार से जादुई माहौल बनाया, जिसमें लोकप्रिय ठुमरी 'हमरी अटरिया पे' ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया|


उज्जवल ने कहा, 'कबीर महज अध्यात्मिकता तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका दर्शन कहीं अधिक विस्तृत है| खुद को अध्यात्मिकता से बाहर निकालते हुए, कबीर हमें मानवीय और सामाजिक आदर्श सिखाते हुए, भेदभाव से परे रहने का ज्ञान देते हैं|'


'जब बात कबीर के ज्ञान की आती है तो वो लय, माधुर्य और साहित्य का अनुपम संगम है,' उन्होंने आगे कहा|


सौरभ चक्रवर्ती और देवेश की संचालित हेरिटेज वाक के माध्यम से दिन आगे बढ़ा| उन्होंने शहर की रहस्यमयी गलियों में से घुमाते हुए, बनारस की अनसुलझी, अनजानी पहेलियों के बारे में भी बताया| हेरिटेज वाक गुलेरिया घाट से शुरू होकर भूलभुलैया गलियों की तरफ बढ़ी| फेस्टिवल के पहले दिन की दोपहर में एक और हेरिटेज वाक का आयोजन किया गया था|


गुलेरिया घाट पर एक ख़ास साहित्यिक चर्चा के बाद लजीज व्यंजन खुशबू ने माहौल को खुशनुमा बना दिया| मुंबई के जश्न-ए-कलम के केसी शंकर और विक्की आहूजा ने सोलो परफॉरमेंस देते हुए दो यादगार फोकटेल्स की प्रस्तुति दी| स्वर्गीय विजयदान देथा, बिज्जी ने अपने लेखन में कबीर की जटिलता और संपन्नता का होशियारी से इस्तेमाल किया है| जश्न-ए-कलम के कलाकारों ने बिज्जी के कार्य के माध्यम से रहस्यवादी कवि के कई भावों को साकार किया|


शिवाला घाट पर सूर्यास्त के साथ, शाम के प्रोग्राम की शुरुआत हुई, जिसमें विविध संगीतकारों ने कबीर के पदों को सुनाया| कार्यक्रम की शुरुआत पंडित अजय शंकर प्रसन्ना के 'बांसुरी वादन' से हुई| पीढ़ियों से चली आ रही इस बांसुरी ने हवा के साथ मिलकर वो सम्मोहन रचा, जिसने श्रोताओं को सुरों के रस में भिगो दिया|


'कबीर सर्वाधिक औचित्यपूर्ण कवि हैं| उनका लेखन आज के समय में उतना ही प्रासंगिक है| मैं समझता हूँ कि उनके लेखन और दर्शन को संगीत ही सही मायनों में दुनिया तक पहुंचा सकता है,' पंडित अजय शंकर ने कहा|


शाम के संगीत का शुभारम्भ, शिवाला घाट पर डीपीएस वाराणसी के छात्रों ने किया और दिन की अंतिम प्रस्तुति उस्ताद कमाल साबरी के नाम रही| उस्ताद कमाल साबरी ने सारंगी के माध्यम से सेनिया घराना मुरादाबाद की 400 से चली आ रही परम्परा को प्रस्तुत किया| उस्ताद ने कबीर के रहस्यमयी काव्य के साथ भारतीय शास्त्रीय रागों से श्रोताओं पर जादू चला दिया| उस्ताद कमाल साबरी ने संत कबीर को समर्पित 'मन लागो यार फकीरी में' की जानदार प्रस्तुती दी|


महिंद्रा ग्रुप के कल्चरल आउटरीच, वाईस प्रेसिडेंट, जय शाह ने फेस्टिवल के बारे में बात करते हुए कहा, “अलौकिक संगीत और शानदार स्वागतीय कार्यक्रम के माध्यम से महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल के चौथे संस्करण की जबरदस्त शुरुआत हुई| अब तक, हमने अनेकों युवा कलाकारों की आवाज को दुनिया तक पहुँचाया है| महिंद्रा ग्रुप इन युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित कर गर्वित है|”


टीमवर्क आर्ट्स के एमडी, संजॉय रॉय कहते हैं, “हमें प्रकृति और ब्रहमांड द्वारा दिए उपहारों को याद रखना चाहिए – ये प्रतिभा, प्यार, सुन्दरता... इसी के माध्यम से हम आसपास फिअली नफरत को ख़त्म कर सकते हैं|”


रविवार को, फेस्टिवल की शुरुआत सुबह 6:30 बजे, गुलेरिया घाट पर होगी, जहां बांसुरी वादक राकेश कुमार, भारतीय शास्त्रीय वायलन-वादक सारदा प्रसन दास के साथ मिलकर प्रस्तुति देंगे| इसके बाद जानी-मानी कबीर-पंथी शबनम विरमानी और संगीतकार स्वागत शिवकुमार अपने सुरों का जादू चलाएंगे| गुलेरिया घाट से हेरिटेज वाक का आयोजन सुबह 10 बजे और शाम को 3 बजे किया जायेगा| साहित्यिक सत्रों में उपन्यासकार और अकादमिक पुरुषोत्तम अग्रवाल और स्तंभकार व क्यूरेटर साधना राव अपने विचार रखेंगे| शाम के संगीत की शुरुआत 6:30 बजे, शिवाला घाट पर होगी| जिसमें ओमप्रकाश नायक, पाटो बैंटन, यूनिटी अर्थ ग्रुप के एन्टोइनेट हॉल और क्रिस्टिन होफमैन प्रदर्शन करेंगे| शाम के संगीत की समाप्ति फ्यूज़न बैंड कबीर कैफे और सूफी लोकगायक मूरालाला मारवाडा के साथ होगी|           
 
महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल | महिंद्रा ग्रुप और  मनोरंजन की प्रमुख कंपनी टीमवर्क आर्ट्स की संयुक्त संकल्पना  है .यह 15वीं सदी के कवि-संत कबीर के दर्शन का अनोखा उत्सव है|