हिंदी को पुरातन संस्कृति व साहित्य ही नहीं बल्कि आधुनिकता का वाहक बनाना जरूरी है।- शालिनी चौहान

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी  भाषा है हिन्दी।


अंग्रेजी व उर्दू के शब्द सम्पदा को सहेजे नई पीढ़ी की हिंदी गाँव से लेकर गूगल तक की भाषा के रूप में तेजी से बढ़ रही है।


आज अंग्रेजी व्यवसाय, नौकरी, विज्ञान व तकनीक से जुड़ गयी है और समाज में सम्मान का प्रतीक बन गयी है।ऐसे में अंग्रेजी की तरफ रुझान स्वाभाविक सा लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है। भारत में अंग्रेजी का वर्चस्व वैश्विक जरूरत के कारण नहीं है बल्कि सरकारों की गलत नीति के कारण है। 


हर विकसित देश में तकनीक - विज्ञान व व्यवसाय में अपनी भाषा का प्रयोग होता है। यही उनकी उन्नति का मूल कारण है। इसी के आधार पर नौकरियां मिलती हैं और उच्च कोटि के शोध होते हैं। फिर भारत में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाने की होड़ क्यों है? क्योंकि सरकारों की नीतियों ने अंग्रेजी को ऊँचे पदों पर रखा है।हमारे सभी उच्च  शिक्षण संस्थान अंग्रेजी में ही चलते हैं।देश की उच्च संस्थाएं अंग्रेजी में काम करती हैं। देश की सभी बड़ी व अन्य अधिकांश परीक्षाओं में अंग्रेजी अनिवार्य है। बच्चों की ऊर्जा एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजी की तैयारी में चला जाता है।गलत नीतियों के कारण अभिभावक अंग्रेजी के पीछे भाग रहा है।


अनेक वैज्ञानिक शोध यह साबित कर चुके हैं कि मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे की बुद्धि का सबसे अच्छा विकास होता है। मातृभाषा में पढ़ रहे बच्चों की विज्ञान व गणित की समझ  अंग्रेजी माध्यम के बच्चों से सामान्यतया ज्यादा अच्छी होती है। भारत में IBC के शोध में यह साबित भी हुआ है।अपनी भाषा में विषय समझने में आसानी होती है।


अंग्रेजी सीखने में कोई आपत्ति नहीं है वह विश्व भाषा है , लेकिन वह भाषा के रूप में सिखाई जाय न कि पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी हो।जब बच्चे को भाषा ही नहीं आती तो वह उस भाषा में अन्य विषय कैसे सीखेगा?


अगर आपको हिंदी अच्छे से समझ में आती है तो आप कोई भी विदेशी भाषा आराम से सीख सकते हैं।


विश्व की वास्तविकता अंग्रेजी नहीं है।विश्व के बहुत से उद्योग अंग्रेजी आधारित नहीं हैं। अपनी भाषा उन्नति का मूल है, यह भावनात्मक बात नहीं है बल्कि वैज्ञानिक तथ्य है।हमने समाज में भ्रम फैला दिया है कि बिना अंग्रेजी के विकास नहीं हो सकता।


माइक्रोसॉफ्ट, सन, गूगल, याहू, ओरेकल, फेसबुक, ट्विटर जैसी कम्पनिया व्यापक बाजार और मुनाफे को देखते हुए हिंदी को बढ़ावा दे रही हैं।


भारत को बेहतर ढंग से जानने के लिए विश्व के 115 से ज्यादा शिक्षण संस्थाओं में हिंदी पढ़ाई जाती है।


ऐसा नहीं है कि महज धर्म व संस्कृति की वजह से हिंदी सीख रहे हैं, बिजिनेस एक बड़ी वजह है।साउथ कोरिया में लोग हिंदी सीख रहे हैं क्योंकि हुंडई, सैमसंग, एल जी आदि कम्पनियां भारत में मोटा निवेश कर चुकी हैं।


भारतीय भाषाओं को तकनीक से जोड़ा जाना जरूरी है।अपनी भाषा में तकनीक की जानकारी से सृजन शक्ति बढ़ेगी और अच्छे शोध होंगे।
प्रबंध, तकनीक व व्यवसाय में भाषा का विकल्प देना होगा।कम्प्यूटर विज्ञान के लिए अंग्रेजी से ज्यादा गणित व तर्क की समझ जरूरी है।