तप और तपस्या को गहराई से समझे -आचार्य रुपाली सक्सेना

। ओ३म् ।।
तप
दिवमारुहत् तपसा तपस्वी ।
----- अथर्व० १३/ २/ २५
( तपस्वी ) तपस्वी ( तपसा ) तप से ( दिवम् , आरुहत् ) ऊपर उठता है ।
संसार के सभी महापुरुषों ने तप करने पर बड़ा बल दिया है ।जीवन का अधिक- से- अधिक आनन्द और सुख प्राप्त करने के लिए तप की आवश्यकता है ।


   परन्तु तप है क्या ? आजकल तप के नाम पर पाखण्ड बहुत हो रहा है । कोई अपना हाथ ऊपर उठाकर खड़ा हो जाता है,
कोई काँटों के ऊपर लेट जाता है, कोई भूमि में गढ़ा खोदकर उसमें बैठ जाता है और गढ़े को ऊपर से बन्द करा देता है, कोई गर्मी के दिनों में अपने चारों ओर अग्नि जलाकर उसमें तपता है । ये सब ढोंग और पाखण्ड है ।इस प्रकार शरीर को कष्ट देने का नाम तप नहीं है ।
तप का अर्थ है धर्म, सत्य और न्याय- मार्ग पर चलते हुए जो विघ्न- बाधाएँ और कष्ट आएँ उन्हें सहते हुए आगे- ही- आगे बढ़ते जाना । तप का अर्थ है भूख- प्यास, गर्मी- सर्दी, सुख- दुःख, हर्ष- शोक और मान- अपमान को सम- भाव से सहन करना । तप का अर्थ है भोजन, वस्त्र, व्यायाम, विश्राम, अध्ययन आदि सभी बातों में आवश्यकता के अनुकूल आचरण, जिससे शरीर पूर्ण स्वस्थ रह सके ।
गीता के अनुसार तप तीन प्रकार का है-- ( १ )
शारीरिक तप, ( २ ) वाणी का तप, ( ३ ) मानस- तप ।
शरीर से हम गुरु, विद्वान, ब्राह्मण आदि का पूजन करें अर्थात् सेवा करें; नम्र और विनीत बनें; पवित्र और स्वस्थ हों; आँख, कान, हाथ, पाँव आदि सभी इन्द्रियों को वश में रक्खें; किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाएँ ।
वाणी से हम दूसरों को कष्ट देनेवाली और चुभनेवाली बातें न कहें । हम सत्य बोलें, परन्तु कटु- सत्य न बोलें; प्रिय और मीठा बोलें । उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन और ' मैं कौन हूँ ' इस तत्त्व का चिन्तन-- यह वाणी का तप है ।
मन से हम प्रसन्न रहें, शान्त रहें, मौन रहें, मन का निग्रह करें और अन्त: करण को पवित्र रक्खें, यह मानस- तप है ।
आज संसार में लूले, लँगड़े, अन्धे, बहरे और गूँगों की कमी नहीं है । हमने झूठा तप तपकर और अपने शरीरों को सुखा- सुखाकर अपने- आपको वैसा बना लिया तो क्या ? बात तो तब है जब हम इस शरीर का सदुपयोग करते हुए दूसरों का उपकार कर सकें ।
भगवान् बुद्ध तप कर रहे थे । अपने शरीर को सुखा रहे थे । शरीर सूखकर हड्डियों का ढाँचा रह गया था,
फिर भी सफलता नहीं मिल रही थी । एक दिन उन्होंने किसी को एक गीत गाते सुना जिसमें कहा गया था-- ' वीणा के तारों को न तो इतना कसो कि वे टूट जाएँ और न इतना ढीला छोड़ो की ध्वनि न निकले । '
इसी सूत्र को उन्होंने अपने जीवन का आधार बनाया और उन्हें सफलता मिली ।
हम भी तप के वास्तविक अर्थ को समझकर तप करें, हम अपने जीवन में सफल होकर उन्नति के शिखर पर विराजमान होवेंगे ।