सृष्टि के हित में ऋतुओं का सजृन, बदलती जलवायु एवं मौसम के शुरुआती दौर में हो रही भीषण बारिश पर विशेष

    ईश्वर प्रकृति या सृष्टा ने इस सृष्टि की रचना करने के समय ही मनुष्यों की ही नहीं बल्कि प्राणी जगत की सुविधा के लिए साल में मुख्य रूप से चार मौसम बनाए थे जिन्हें हम जाड़ा गर्मी बरसात एवं बसंत ऋतु कहते हैं।उसी समय इन सभी ऋतुओं के आने और जाने का काल यानी समय भी तय कर दिया गया था। इन चारों ऋतुओं का धरती पर रहने वाले मनुष्यों ही नहीं बल्कि प्राणी जगत के जीवन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक समय था जबकि सभी ऋतुएँ यानी मौसम अपने नियत तय समय पर आते जाते थे और धरती एवं जीवन के रक्षक की भूमिका अदा करते थे।


   आषाढ़ महीना लगते ही बरसात शुरू हो जाती थी और तीन महीने तक नक्षत्रवार बारिश होती थी जिससे ताल तलैया नदी सभी पानी से रिचार्ज एवं पानी से मालामाल होकर अगली बरसात तक के लिये सक्षम हो जाते थे। कहावत है कि"बिना मघा नक्षत्र के बरसे धरती का और बिना माता के भोजन परसे बेटे का पेट नहीं भरता है"छ।बरसात से धरती का पेट भरता है और चहुदिश हरियाली फैल जाती है। कुआर महीना आते ही बरसात खत्म हो जाती थी और बरसाती फसलों का कटना शुरू हो जाता था।


   बरसाती फसलों के कटने के साथ ही जाड़े की आमद हो जाती थी और जाड़े की फसलों गेहूं आदि की बुवाई शुरू हो जाती थी।जाड़े की फसलों के लिए महावट की हल्की बरसात होती थी जिससे जाड़े का मौसम जवान होकर परवान चढ़ने लगता था।माघ महीना आते है जाड़े के मौसम की जान निकलने लगती थी और कहावत थी कि "आधे माघे कंबल कांधे"।


    माघ महीना खत्म होते फागुन में बसंत ऋतु आ जाती थी और जाड़े का मौसम खत्म होने लगता था।जाड़े की फसलों में फूल फल आने लगते थे और पकने की ओर अग्रसर हो जाती थी।चारों तरफ खुशियाँ छाने लगती थी तथा मौसम मदमस्त धानी बासंती रंगीन हो जाता था और चारों तरफ होली का हुड़दंग शुरू हो जाता है और बुढ्ढों में भी उमंग आ जाती थी। चैत लगते ही जाड़े की फसलें पककर तैयार होकर घर आने लगती है और घर धन धान्य से भरने लगता है।आधुनिकता के दौर में मनुष्यों द्वारा की गई छेड़छाड़ के चलते ईश्वर अथवा प्रकृति द्वारा बनाये गये मौसमों में इधर व्यापक बदलाव होने लगा है जिससे असमय बरसात सूखा जाड़ा एवं गर्मी होने लगी है।


    इतना ही नहीं प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ के चलते आज पर्यावरण असंतुलित होकर धरती एवं ऋतुओं को विकृत करने लगा है जिससे मौसम का स्वरूप भी परिवर्तित होकर सृजन की जगह विनाशकारी होने लगा है।फलस्वरूप बरसात कहीं कम कहीं ज्यादा होने लगी है जिससे कुआँ तालाब झील ही नही बल्कि नदियाँ भी सूखने एवं उमड़ने लगी है। इस वर्ष अभी बरसात के मौसम की शुरुआत ही अभूतपूर्व प्रलंयकारी बारिश से हुयी है जबकि आज भी कई जगहों पर लोग भीषण गर्मी से जूझकर मानसून आने की राह देख रहे हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, गुजरात जैसे राज्यों में देखते ही देखते भीषण बाढ़ जैसे हालत बन गये हैं जिससे जगह जगह जान माल का खतरा पैदा हो गया है और लोगों का जीना मुहाल हो गया है।उत्तराखंड पंजाब चंडीगढ़ सहित कई राज्यों में भारी बारिश की संभावना व्यक्त करते हुये सतर्क किया जा रहा है।


   इस बार शुरूआती दौर में ही बरसात ने तबाही मचानी शुरू कर दी है और जितनी बारिश पूरे मौसम में होनी थी उतनी बीते एक सप्ताह में ही हो चुकी है।अप्रत्याशित बरसात से स्थिति बद से बदतर हो गई है और चारों तरफ हाहाकार मच गया है। अबतक समुद्र में बाढ़ नहीं आती थी लेकिन इधर समुद्र में भी तूफानी हवाओँ के साथ चक्रवाती बाढ़ आने लगी है और तरह तरह के तूफान हर साल सैलाब का रूप धारण करके तबाही मचाने लगे हैं।अबतक पहाड़ों पर यदाकदा ही बादल फटने से मूसलाधार बारिश तो होती थी लेकिन इतनी तबाही नहीं होती थी लेकिन अभी पिछले वर्षों पहाड़ पर आई त्रासदी आफत यादगार बन गई है जिसमे हजारों लोग पलक झपकते ही काल के गाल में समा गये और तमाम लोगों का आजतक पता नहीं चल सका है।


   इस बार बरसात के शुरुआती मौसम के समय विभिन्न राज्यों में हो रही मूसलाधार बारिश भावी भविष्य के खतरे की द्योतक मानी जा रही है और जलवायु परिवर्तन दुनिया के सामने एक समस्या बन गई है।तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन से आज दुनिया के लिए खतरा पैदा हो गया है और माना जा रहा है कि अगर यही हाल रहा तो पानी आने वाले समय में देश दुनिया का नक्शा एवं तस्वीर बदल सकता है।


   जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण असंतुलन से बरसात जाड़ा एवं गर्मी तीनों का संतुलन बिगड़ गया है और तीनों मौसमों में "अति" होने लगी है जबकि कहा गया है कि-"अति का भला न बोलना अति की भली चूप अति का भला न बरसना अति की भली न धूप"।