सभी जानते हैं कि जल ही जीवन होता है, चाहे मनुष्य हो चाहे पशु पक्षी हो सभी के लिये पानी जरूरी है। इसीलिए कहा भी गया है कि-" रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून, पानी गए न उबरे वन मानुष और चून"। कहने का मतलब साफ है कि पानी के बिना न तो वन जंगल हरा भरा जिंदा रह सकता है और न ही मनुष्य एवं पशु पक्षी ही जिंदा रह सकते हैं।
इसी तरह अगर एक बार चूने के पास सूख जाता है तो पानी के अभाव में चूना खाने लायक नहीं रह जाता है और अगर एक बार मर जाता है तो दुबारा पानी डालकर भी जिंदा खाने योग्य नहीं हो सकता है। पानी के बिना यह धरती भी मृत प्राय हो जाती है और उसे रेगिस्तान कहा जाने लगता है। सभी जानते हैं कि प्यास बुझाने के लिए पानी हमें धरती के अंदर से मिलता है और धरती के अंदर पानी का संचय बरसात के पानी के संरक्षण से होता है। इधर जलवायु परिवर्तन होने के कारण जल का संचय पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पा रहा है साथ ही संरक्षण न होने के कारण धीरे धीरे भूगर्भ जल स्तर तेजी से घटने लगा है। अगर दुनिया के विभिन्न देशों के जलस्तर पर गौर किया जाए तो अधिकांश देशों में जल स्तर तेजी से दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ने की जगह घटता ही जा रहा है।
अगर अपने ही देश में देखा जाए तो महाराष्ट्र राजस्थान मध्यप्रदेश जैसे कई राज्य एवं जिले ऐसे हैं जहां पर वर्तमान समय में जल संकट के चलते हाहाकार मची हुई है और वहां के नागरिकों को जिंदा रखने के लिए सरकार को टैंकरों से पानी की व्यवस्था करनी पड़ रही है। जल का संकट जहाँ एक तरफ धीरे धीरे पूरी दुनिया की एक समस्या बनती जा रहा है वहीं इसे लेकर दुनिया भर में चिंता बढ़ती ही जा रही है। स्थिति यहां तक बिगड़ गई है कि कहा जाने लगा है कि अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर हो सकता है। आज पूरी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है और समस्या समाधान करने में जुटी हुई है।यह सही है कि अगर समय रहते जल को संरक्षित करके उसकी बर्बादी पर रोक न लगाई तो वह दिन दूर नहीं है कि लोगों का जीवन भविष्य संकट में पड़ जाएगा।जल संकट के लिए कोई दूसरा नहीं बल्कि हम खुद दोषी है क्योंकि एक समय वह भी था जल संकट के चलते लोगों को तालाब एवं नदियों के पानी का इस्तेमाल करना पड़ता था। उसके बाद तालाब नदियों की जगह कुआं खोदकर पानी की वैकल्पिक व्यवस्था शुरू हो गई और जगह जगह कुआं बनने लगे। समय के बदलाव के साथ साथ कुओं का स्थान नलकूपों एवं हैंडपंपों का जमाना आ गया और पानी का खर्च एवं बर्बादी दोनों बढ़ने लगी। आज स्थिति यह है कि घर घर में पानी निकालने के लिए समरसेबल लगने लगे हैं जिससे पानी का खर्च असीमित हो गये है। कहने का मतलब साफ है कि पहले जब कुएं से पानी मिलता था तब लोगों का दैनिक कार्य घड़ा दो घड़ा चार घड़ा से पूरा हो जाता था। लेकिन जब हैंडपंप और नलकूप लग गए तो वही काम दस बीस घड़ों में भी नहीं पूरा होता है। पानी की बर्बादी जैसे एक फैशन बनता जा रहा है और एक लोटा की जगह एक बाल्टी पानी खर्च होने लगा है।जल संरक्षण एवं जल संचय की जगह पानी का दुरुपयोग शुरू हो गया है।
जल संचय न होने से जलस्तर तेजी से गिर ही रहा है लेकिन जल संरक्षण की तरफ कोई गौर नहीं कर रहा है। अगर पानी की बर्बादी का यही आलम रहा और जल संरक्षण की तरफ ध्यान न दिया गया तो बहुत जल्दी ही धरती पर जीवन संकट में पैदा हो जायेगा है। यही कारण है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को इस बार जल संचय या जल संरक्षण का नारा देते हुए लोगों से सहभागिता करने की अपील करनी पड़ी है।
यह सही है कि अगर हमें अपने से प्रकृति के भविष्य को सुरक्षित रखना है तो हर दशा में हमें पानी का संरक्षण एवं संचय करना ही होगा। जल संचय के लिए यह जरूरी है कि हम अपने दैनिक उपयोग में इस्तेमाल किए जाने वाले पानी को बरबाद एवं दुरपयोग करने की जगह उसे संचित करें और संरक्षित करना होगा। जो कार्य चार बाल्टी पानी से होता है उसे कम से कम एक दो बाल्टी में पूरा करने का प्रयास करना होगा।
इतना ही नहीं विभिन्न कल कारखानों प्रतिष्ठानों धर्म स्थानों पर पानी का जो दुरुपयोग हो रहा है उस पर भी नियंत्रण करना होगा। जल संचय के लिए यह भी जरूरी है कि हम खेती किसानी के लिए जो पानी इस्तेमाल करते हैं उसे आधुनिक तकनीक के आधार पर इस्तेमाल करे जिससे की फसल भी पैदा हो जाए और पानी की बर्बादी भी न हो।
अगर समय रहते जल संचय की दिशा में ध्यान न दिया गया तो यह निश्चित है कि हमारी भावी पीढ़ी का जीवन खतरे में पड़ जाएगा और इस धरती पर मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों का जिंदा रह पाना असंभव हो जाएगा।