दुख होता है जब पूरे विश्व के लिए समस्या बने लोग प्रग्या भारती जैसे साध्वी की ओट लेकर अपना मुंह छुपाने की कोशिश करते हैं।सच तो यह है कि न आपका पूरा समाज आतंकवादी है ना सर्वे भवन्तु सुखिनः का नारा लगाने वाला सनातन धर्मी ।
उक्त बाते अखिल भारतीय बौद्ध शोध संस्थान के राष्ट्रिय संयोजक अरुण कुमार सिंह ने भगवा आतंकवाद के परिपेक्ष्य में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में पत्रकारों से मुखातिव होते हुए साध्वी प्रज्ञा प्रकरण में कही ! उन्होंने कहा की कुछ विशेष मानसिकता से ग्रसित लोंगो को अटपटा लग सकता है लेकिन सच यह है कि सनातन धर्म में पैदा होने वाला कभी भी आतंकवादी नहीं हो सता है कारण इस धर्म में पैदा होने से पहले मतलब जबकि वह माँ के पेट में ही रहता है उसके संस्कार शुरू हो जाते हैं और यह संस्कार भी उसे जल, थल व नभ को साछी मानकर ही नहीं दिये जाते हैं बल्कि इतने अनुष्ठान करवाये जाते हैं कि मां बाप ही नहीं वहां मौजूद अन्य रिश्तेदार जो इसमें बाकायदा आमंत्रित होते हैं सब सुनते व उसे मानते हैं कारण वह धर्म से जुड़ा होता है जो एक परिपाटी की तरह होता है आज मेरे घर में कल आपके घर में ।
लिहाजा यह एक जीवनशैली बन चुका है और यह संस्कार जो मनुष्य के जीवनकाल में 16 बार होते हैं सोलहवां अंतिम होता है जो श्मशान घाट पर उस मनुष्य के देहावसान के साथ ही समाप्त हो जाता है। यह है हमारी सनातन संस्कृति जो पूरे जीवनकाल को संस्कारों के अधीन रहकर चलना सिखाती है इसमें कोई भी अवरोध हमारा समाज स्वीकार नही करता है।
शायद यही कारण है कि हम सैकड़ों बार एक से एक बर्बर आक्रांताओं और उन्मादी धर्मान्ध आततायियों का शिकार होने के बावजूद हमने अपनी उदारता व संस्कारों का परित्याग नहीं किया। अगर सनातन धर्म में आतंक की कोई जरा सी गुंजाइश होती तो आतंकवाद आर्यावर्त में कभी अपने पैर ना पसार पाता। ध्यान रखियेगा हमने आर्यावर्त कहा है जिसकी सीमाओं को अगर आज आप देखोगे तो कुछ अलग नजारा व संस्कृति वहां नजर आएगी।